उत्तर प्रदेश के लोकगीत
लोक संगीत किसी भी संस्कृति में आम जनता द्वारा पारंपरिक रूप से प्रचलित गीत-संगीत को बोला जाता है। उत्तर प्रदेश में लोक संगीत का खजाना है, जिसमें प्रत्येक जिले में अद्वितीय संगीत परंपराएं हैं। इस राज्य को हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के ‘पुबैया अंग’ के गढ़ के रूप में माना जाता है। इस लेख में हमने उत्तर प्रदेश के लोकगीतो की सूची दिया हैं जो UPSC, SSC, State Services, NDA, CDS और Railways जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए बहुत ही उपयोगी है।
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बुंदेलखंड
आल्हा, पवाँरा, हरदौल, ईसुरी, फ़ाग |पूर्वांचल :
बिरहा, दादरा, सुहानी, चैती, चौलर , झूला , नटका |साधु संतो द्वारा गाये जाते है
पचरा, पूरन भगत , मृतिहरि , निर्गुण – यह लोकगीत सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में निवास निवास करने वाले साधु संतो द्वारा गाये जाते हैपश्चिमी उत्तर प्रदेश
स्वाग, ढोला, रागिनी |रुहेलखंड
बहरतबील, लावणीअवध
सोहर, कब्बाली, संस्कार गीत , नाटकब्रज
झूला , होरी , फ़ाग , रसिया , अंगुरिया |उत्तर प्रदेश के प्रमुख लोकगीत (लोक संगीत)
1. सोहर
इस लोकगीत में जीवन चक्र के प्रदर्शन संदर्भित किया जाता है इसलिए इसे बच्चे के जन्म की ख़ुशी में गया जाता है।
2. कहारवा
यह विवाह समारोह के समय कहर जाति द्वारा गाया जाता है।
3. चानाय्नी
एक प्रकार का नृत्य संगीत।
4. नौका झक्कड़
यह नाई समुदाय में बहुत लोकप्रिय है और नाई लोकगीत के नाम से भी जाना जाता है।
5. बनजारा और न्जावा
यह लोक संगीत रात के दौरान तेली समुदाय द्वारा गाया जाता है।
6. कजली या कजरी
यह महिलाओं द्वारा सावन के महीने में गाया जाता है। यह अर्द्ध शास्त्रीय गायन के रूप में भी विकसित हुआ है और इसकी गायन शैली बनारस घराना से मिलती है।
7. जरेवा और सदावजरा सारंगा
इस तरह के लोक संगीत लोक पत्थरों के लिए गाया जाता है।
इन लोक गीतों के अलावा, गज़ल और ठुमरी (अर्द्ध शास्त्रीय संगीत का एक रूप, जो शाही दरबार में बहुत प्रचलित था) अवध क्षेत्र में काफी लोकप्रिय रहा है और जैसे क़व्वाली (सूफी स्वर या कविता का एक रूप है, जो भजनों से विकसित हुआ है) और मंगलिया। उनमें से दोनों उत्तर प्रदेश के लोक संगीत का एक मजबूत प्रभाव दर्शाते हैं।
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